अविश्वास प्रस्ताव क्या है ? -
अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ लोकसभा में विपक्षी पार्टी की तरफ से लाया जाने वाला एक प्रस्ताव है। जब विपक्षी दलों में से किसी पार्टी को ऐसा लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन का विश्वास खो चुकी है। वैसी स्थिति में पार्टी की तरफ से ये प्रस्ताव लाया जाता है यह केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है, राज्यसभा में नहीं। अविश्वास प्रस्ताव से संबंधित नियम 198 के तहत व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है।
कैसे लाया जाता है अविश्वास प्रस्ताव
सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहती हैं।
सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहती हैं।
अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी सदस्य
अविश्वास प्रस्ताव तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो। वहीं जब इस पर चर्चा होती है तो सदस्यों की संख्या सरकार के सदस्यों की संख्या से ज्यादा होनी चाहिए।
अविश्वास प्रस्ताव तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो। वहीं जब इस पर चर्चा होती है तो सदस्यों की संख्या सरकार के सदस्यों की संख्या से ज्यादा होनी चाहिए।
अविश्वास प्रस्ताव की दुबारा प्रक्रिया
अविश्वास प्रस्ताव एक बार में अगर नामंजूर हो जाए तो विपक्षी दल छह महीने बाद फिर से इस पर नोटिस दे सकते हैं।
अविश्वास प्रस्ताव एक बार में अगर नामंजूर हो जाए तो विपक्षी दल छह महीने बाद फिर से इस पर नोटिस दे सकते हैं।
अविश्वास प्रस्ताव की मंजूरी के बाद की प्रक्रिया
सरकार बने रहने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का गिरना यानी नामंजूर होना जरूरी है और अगर प्रस्ताव को सदन ने मंजूर कर लिया जाए तो सरकार गिर जाती है। सदन में मौजूद कुल सदस्यों में से बहुमत अगर सरकार के खिलाफ वोट देने वालों का है तो सरकार गिर जाती है। लोकसभा अध्यक्ष इसकी चर्चा के लिए तारीख बताते हैं। प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है। इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है।
सरकार बने रहने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का गिरना यानी नामंजूर होना जरूरी है और अगर प्रस्ताव को सदन ने मंजूर कर लिया जाए तो सरकार गिर जाती है। सदन में मौजूद कुल सदस्यों में से बहुमत अगर सरकार के खिलाफ वोट देने वालों का है तो सरकार गिर जाती है। लोकसभा अध्यक्ष इसकी चर्चा के लिए तारीख बताते हैं। प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है। इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है।
अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास
भारतीय ससंदीय इतिहास में सबसे पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरु की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने संसद में नेहरु सरकार के खिलाफ प्रस्ताव रखा था। लेकिन इसके पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे। जबकि प्रस्ताव के विरोध में 347 वोट।
भारतीय ससंदीय इतिहास में सबसे पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरु की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने संसद में नेहरु सरकार के खिलाफ प्रस्ताव रखा था। लेकिन इसके पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे। जबकि प्रस्ताव के विरोध में 347 वोट।
अविश्वास प्रस्ताव कितनी बार मंजूर हो चुके है
संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं। 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया।
संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं। 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया।
अविश्वास प्रस्ताव : एक नजर
- सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए।
- लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया।
- 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए अविश्वास प्रस्ताव को हरा पाए।
- सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है। उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे।
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए। जिसमें पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के ख़िलाफ़।
- अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और दोनो बार वे असफल रहे। 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए।
- मोदी सरकार के खिलाफ पहली बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है।
- सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए।
- लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया।
- 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए अविश्वास प्रस्ताव को हरा पाए।
- सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है। उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे।
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए। जिसमें पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के ख़िलाफ़।
- अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और दोनो बार वे असफल रहे। 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए।
- मोदी सरकार के खिलाफ पहली बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है।
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