हिन्दी (हिन्दी, हिन्दुस्तानी उच्चारण: [ˈhɪndi]) हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्द का प्रयोग अधिक होता है और अरबी-फ़ारसी और संस्कृत से तद्भव शब्द कम हैं। हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।
परिवार
हिन्दी हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। हिन्द-आर्य भाषाएँ वो भाषाएँ हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। उर्दू, कश्मीरी, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, रोमानी, मराठी नेपाली जैसी भाषाएँ भी हिन्द-आर्य भाषाएँ हैं।
हिंदी के विभिन्न नाम या रूप
- हिन्दवी
- रेख्ता
- दक्खिनी
- खड़ी बोली[6]
इतिहास क्रम
मुख्य लेख : हिन्दी भाषा का इतिहास
हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिन्दी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ठ' से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसी अवहट्ठ को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया।
अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ।
अपभ्रंश के सम्बंध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। प्रश्न यह कि देशीय शब्द किस भाषा के थे ? भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है ‘जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न है। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतया अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परंतु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है, प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृतआदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गई।
हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति
हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि -
- संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।
- वह सबसे अधिक सरल भाषा है।
- वह सबसे अधिक लचीली भाषा है।
- हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है.
- वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन है।
- वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है।[7]
- हिंदी का शब्दकोश बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं.
- हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।
- हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।
- हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।
- हिंदी दुनिया की दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है.
- हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।
- हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मोहताज नहीं रही।[8]
- भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन
- भारत की सम्पर्क भाषा
- भारत की राजभाषा
हिन्दी के विकास की अन्य विशेषताएँ
- हिन्दी पत्रकारिता का आरम्भ भारत के उन क्षेत्रों से हुआ जो हिन्दी-भाषी नहीं थे/हैं (कोलकाता, लाहौर आदि।
- हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आन्दोलन अहिन्दी भाषियों (महात्मा गांधी, दयानन्द सरस्वती आदि) ने आरम्भ किया।
- हिन्दी भाषा सदा से उत्तर-दक्षिण के भेद से परे चहुंदिशी व्यावहारिक होती चली आई है। उदाहरण के लिये दक्षिण के प्रमुख संतो वल्लभाचार्य, विट्ठल, रामानुज, रामानन्द आदि महाराष्ट्र के नामदेव तथा संत ज्ञानेश्वर, गुजरात के नरसी मेहता, राजस्थान के दादू, रज्जब, मीराबाई, पंजाब के गुरु नानक, असम के शंकरदेव, बंगाल के चैतन्य महाप्रभु तथा सूफी संतो ने अपने धर्म और संस्कृति का प्रचार हिन्दी में ही किया है। इन्होने एक मात्र सशक्त साधन हिन्दी को ही माना था।
- हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है।
- हिन्दी के विकास में राजाश्रय का कोई स्थान नहीं है; इसके विपरीत, हिन्दी का सबसे तेज विकास उस दौर में हुआ जब हिन्दी अंग्रेजी-शासन का मुखर विरोध कर रही थी। जब-जब हिन्दी पर दबाव पड़ा, वह अधिक शक्तिशाली होकर उभरी है।
- जब बंगाल, उड़ीसा, गुजरात तथा महाराष्ट्र में उनकी अपनी भाषाएँ राजकाज तथा न्यायालयों की भाषा बन चुकी थी उस समय भी संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की भाषा हिन्दुस्तानी थी (और उर्दू को ही हिन्दुस्तानी माना जाता था जो फारसी लिपि में लिखी जाती थी)।
- 19वीं शताब्दी तक उत्तर प्रदेश की राजभाषा के रूप में हिन्दी का कोई स्थान नहीं था। परन्तु 20वीं सदी के मध्यकाल तक इसे भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव दिया गया।
- हिन्दी के विकास में पहले साधु-संत एवं धार्मिक नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उसके बाद हिन्दी पत्रकारिता एवं स्वतंत्रता संग्राम से बहुत मदद मिली; फिर बंबइया फिल्मों से सहायता मिली और अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टीवी) के कारण हिन्दी समझने-बोलने वालों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है।
हिन्दी का मानकीकरण
मुख्य लेख : हिन्दी वर्तनी मानकीकरण
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :-
- हिन्दी व्याकरण का मानकीकरण
- वर्तनी का मानकीकरण
- शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरण
- वैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिये एकरूपता के प्रयास
- यूनिकोड का विकास
हिन्दी की शैलियाँ
भाषाविदों के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :
- (१) उच्च हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे शुद्ध हिन्दी भी कहते हैं। आजकल इसमें अंग्रेज़ी के भी कई शब्द आ गये हैं (ख़ास तौर पर बोलचाल की भाषा में)। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्लीऔर उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।
- (२) दक्खिनी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।
- (३) रेख़्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था।
- (४) उर्दू - हिन्दवी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।
हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार,तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है।
हिन्दी की बोलियाँ
मुख्य लेख : हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य
हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है।[10]
हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, झारखंडी, कुमाउँनी, मगही आदि। किन्तु हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी।
शब्दावली
हिन्दी शब्दावली में मुख्यतः दो वर्ग हैं-
प्रथम वर्ग
- तत्सम शब्द- ये वो शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप(पर हिंदी में विसर्ग लोप हो जाता है जैसे संस्कृत 'नामः' हिंदी में केवल 'नाम' है।[11]) बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध दन्त, मुख।
- तद्भव शब्द- ये वो शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे— आग, दूध, दाँत, मुँह।
द्वितीय वर्ग
- देशज शब्द- देशज का अर्थ है - 'जो देश में ही उपजा या बना हो'। जो न तो विदेशी हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना है। ऐसा शब्द जो न संस्कृत हो, न संस्कृत का अपभ्रंश हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो, बल्कि किसी प्रदेश के लोगों ने बोल-चाल में जों ही बना लिया हो। जैसे- खटिया, लुटिया
- विदेशी शब्द- इसके अलावा हिन्दी में कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी आदि से भी आये हैं। इन्हें विदेशी शब्द कहते हैं।
जिस हिन्दी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी के शब्द लगभग पूरी तरह से हटा कर तत्सम शब्दों को ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे "शुद्ध हिन्दी" या "मानकीकृत हिंदी" कहते हैं।
हिन्दी का स्वनिमविज्ञान
मुख्य लेख : हिंदी स्वरविज्ञान
देवनागरी लिपि में हिन्दी की ध्वनियाँ इस प्रकार हैं :
स्वर
ये स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ीबोली) के लिये दिये गये हैं।
| वर्णाक्षर | “प” के साथ मात्रा | आईपीए उच्चारण | "प्" के साथ उच्चारण | IAST समतुल्य | अंग्रेज़ी समतुल्य | हिन्दी में वर्णन |
|---|---|---|---|---|---|---|
| अ | प | / ə / | / pə / | a | बीच का मध्य प्रसृत स्वर | |
| आ | पा | / α: / | / pα: / | ā | दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर | |
| इ | पि | / i / | / pi / | i | ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
| ई | पी | / i: / | / pi: / | ī | दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
| उ | पु | / u / | / pu / | u | ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर | |
| ऊ | पू | / u: / | / pu: / | ū | दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर | |
| ए | पे | / e: / | / pe: / | e | दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
| ऐ | पै | / æ: / | / pæ: / | ai | दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
| ओ | पो | / ο: / | / pο: / | o | दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर | |
| औ | पौ | / ɔ: / | / pɔ: / | au | दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर | |
| <none> | <none> | / ɛ / | / pɛ / | <none> | ह्रस्व अर्धविवृत अग्र प्रसृत स्वर |
इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ये वर्णाक्षर भी स्वर माने जाते हैं :
- ऋ — आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह
- अं — पंचचम वर्ण - न्, म्, ङ्, ञ्, ण् के लिए या स्वर का नासिकीकरण करने के लिए (अनुस्वार)
- अँ — स्वर का अनुनासिकीकरण करने के लिए (चन्द्रबिन्दु)
- अः — अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए (विसर्ग)
व्यंजन
जब किसी स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त् अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे क् ख् ग् घ्।
| अल्पप्राण अघोष | महाप्राण अघोष | अल्पप्राण घोष | महाप्राण घोष | नासिक्य | |
|---|---|---|---|---|---|
| कण्ठ्य | क / kə / | ख / khə / | ग / gə / | घ / gɦə / | ङ / ŋə / |
| तालव्य | च / cə / या / tʃə / | छ / chə / या /tʃhə/ | ज / ɟə / या / dʒə / | झ / ɟɦə / या / dʒɦə / | ञ / ɲə / |
| मूर्धन्य | ट / ʈə / | ठ / ʈhə / | ड / ɖə / | ढ / ɖɦə / | ण / ɳə / |
| दन्त्य | त / t̪ə / | थ / t̪hə / | द / d̪ə / | ध / d̪ɦə / | न / nə / |
| ओष्ठ्य | प / pə / | फ / phə / | ब / bə / | भ / bɦə / | म / mə / |
| तालव्य | मूर्धन्य | दन्त्य/ वर्त्स्य | कण्ठोष्ठ्य/ काकल्य | |
|---|---|---|---|---|
| अन्तस्थ | य / jə / | र / rə / | ल / lə / | व / ʋə / |
| ऊष्म/ संघर्षी | श / ʃə / | ष / ʂə / | स / sə / | ह / ɦə / या / hə / |
- ध्यातव्य
- इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है।
- संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है।
- हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है। परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है।
नुक़्तायुक्त ध्वनियाँ
ये ध्वनियाँ मुख्यत: अरबी और फारसी भाषाओं से लिये गये शब्दों के मूल उच्चारण में होतीं हैं। इनका स्रोत संस्कृत नहीं है। देवनागरी लिपि में ये सबसे करीबी संस्कृत के वर्ण के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगाकर लिखे जाते हैं किन्तु हिन्दी की मानक वर्तनी में विदेशी शब्दों को बिना नुक्ते के ही उनके देसीकृत रूप में लिखने की अनुशंशा की गयी है। इसलिये आजकल हिन्दी में नुक्ता लगाने की प्रथा को लोग अनावश्यक मानने लगे हैं और ऐसा माना जाने लगा है कि नुक्ते का प्रयोग केवल तब किया जाय जब अरबी/उर्दू/फारसी वाले अपनी भाषा को देवनागरी में लिखना चाहते हों।
| वर्णाक्षर (आईपीए उच्चारण) | उदाहरण | वर्णन | देशी उच्चारण |
|---|---|---|---|
| क़ (/ q /) | क़त्ल | अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श | क (/ k /) |
| ख़ (/ x या χ /) | ख़ास | अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी | ख (/ kʱ /) |
| ग़ (/ ɣ या ʁ /) | ग़ैर | घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी | ग (/ g /) |
| फ़ (/ f /) | फ़र्क | अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी | फ (/ pʱ /) |
| ज़ (/ z /) | ज़ालिम | घोष वर्त्स्य संघर्षी | ज (/ dʒ /) |
| ड़ (/ ɽ /) | पेड़ | अल्पप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त | ड (/ ɖ /) |
| ढ़ (/ ɽʱ /) | पढ़ना | महाप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त | ढ (/ ɖʱ /) |
हिन्दी में ड़ और ढ़ व्यंजन फ़ारसी या अरबी से नहीं लिये गये हैं, न ही ये संस्कृत में पाये जाये हैं। वास्तव में ये संस्कृत के साधारण ड, "ळ" और ढ के बदले हुए रूप हैं।
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